Saturday, May 23, 2015

मैं और वो छिपकली !!

                                  हम भारत में रहते हैं, यूरोप में नहीं, जहाँ तापमान 0० हो जाये तो  गर्मी हो गयी। भारत में तो हर मौसम मिल जाता है। हर मौसम का आनंद लिया जा सकता है। आनंद ? नहीं, आनंद कहना ग़लत होगा। हर मौसम को झेलना पड़ता है। मैं झेलना शब्द का इस्तेमाल इसलिए कर रहा हूँ क्यूंकि सबको हर मौसम अच्छा नहीं लगता।

                                  सभी की तरह, मुझे भी सभी मौसम अच्छे नहीं लगते। पर जो मौसम सबसे बुरा लगता है, वो है गर्मी। इसके पीछे  कारण हैं। जैसे कि  सीज़न में काम कम हो है और खर्च बढ़ जाता है। सब्ज़ियाँ अच्छी नहीं लगती, रोज़ ही घीया, टिंडे, तोरियां इत्यादि। कहीं बाहर जाने का मन नहीं करता। पर, मुझे जो सबसे बड़ा कारण लगता है गर्मियां नापसंद होने का, वो है गर्मियों में होने वाले कीड़े जैसे की मच्छर, मख्खियां, मेंढक और सबसे ज़्यादा नफरत है छिपकलियों से।

                                मैं जहाँ रहता हूँ, ये एक बी.एस.एन.एल का सरकारी मकान है। घर का निर्माण लगभग 40 साल पुराना है। हालाँकि ऐसे घर में रहने का मन नहीं करता पर चण्डीगढ़ जैसे शहर में अपना मकान होना भी आसान नहीं है जी। माँ को मिला हुआ है ये मकान। वो बी.एस.एन.एल में कार्यरत हैं। अभी 5 साल की सर्विस बाकी है। मतलब 5 साल और इस मकान में। पुराना मकान होने की वजह से छिपकलियों छुपने के लिए बोहोत सी जगहें मिल जाती हैं। वैसे छिपकलियां तो कहीं भी आ जाती हैं, उन्हें किसी पासपोर्ट की ज़रुरत थोड़ा है। पर पुराने मकान में थोड़ी ज़्यादा होती हैं।

                               जब आप छिपकली से डरते हो, तो अगर वो आपको दिख जाये, तो आपकी नज़रें तब तक उस पर रहती हैं, जब तक कि वो कहीं गायब न हो जाये। मेरे साथ तो ऐसा अक्सर होता है। जब छिपकली मेरे आस पास हो तो मैं उसको देखते रहने के सिवा कुछ नहीं कर पाता। कहीं ध्यान नहीं लगा पाता। मेरा बस चले तो इन छिपकलियों को घर में घुसने ही न दूँ। अब आप कहेंगे कि छिपकलियों के कई फायदे भी हैं , छिपकलियां न होती तो मच्छर, मक्खियाँ कितनी जादा होती। एक तरीके से छिपकलियाँ ज़रूरी भी हैं। मैं आपकी हर बात मानता हूँ, पर क्या वो थोड़ी कम बदसूरत नहीं हो सकती थी। खैर उसकी जैसी भी बनावट है,हम कुछ नहीं कर सकते।

                             कल मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ जिसके बाद मुझे छिपकली से उतनी नफरत नहीं रही। डरता अभी भी हूँ , पर नफरत नहीं करता। हुआ यह कि कल अचानक मेरी नज़र एक छिपकली पर पड़ी जो शायद मेरे कमरे के रौशनदान में फंसी हुयी थी। बहुत छटपटा रही थी , पर निकल नहीं पा रही थी। मैं उसको देख कर बहुत घबरा गया और तरस आने लगा। एक बार मैंने सोचा की अगर मैं किसी तरीके से रौशनदान खोल दूँ, तो छिपकली बच सकती है। पर इतना पास जाना मुझे डरा रहा था। मैं छिपकली से दूर भागता हूँ। डर लग रहा था की कहीं छिपकली मुझ पर ही न कूद पड़े खतरा समझ कर। पर अगर न गया तो, तो वो मर जाएगी। बहुत बुरी तरह से बहार निकलने की कोशिश कर रही थी। मैं उसे अपनी आंखो के सामने ऐसे तड़पते हुए नहीं सेख सकता था। उसके दर्द को महसूस करने लगा था मैं।

                           कोशिश करके मैंने बड़े धीरे से रौशनदान ऊपर उठा दिया। जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला, वो ऐसे भागी जैसे न जाने कब से फंसी हो। मैंने भी उसके छूट जाने पर राहत की सांस ली। 

                           कल से वो अभी तक दोबारा नहीं दिखी। शायद डर कर कहीं छुप गयी है या शायद उसने भी उस घडी में ये समझ लिया होगा कि ये बंदा मुझसे डर रहा है और मुझे यहाँ आकर इसको परेशान नहीं करना चाहिए। सोच रहा हूँ कि काश सच में वो छिपकली इतनी समझदार हो। 

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