Wednesday, May 13, 2015

मेरी लड़ाई !!

                                  मैं जब बारहवीं कक्षा  में था, तभी मैंने एक दिन ये फैसला किया कि मुझे मेरे जीवन के साथ क्या करना है। एक दिन स्कूल से घर आते ही मैंने अपनी माँ से कह दिया की मुझे एक फिल्म निर्देशक बनना है, मुझे  इसके बारे में क्या पढ़ा जाता है, कहाँ पढ़ा जाता है, बस मुझे फिल्में बनानी हैं। माँ ने मुझे प्यार से समझाया की ये फिल्में बनाना आसान काम नहीं होता, रोज़ी-रोटी का कुछ पता नहीं और समाज में इसे अछा काम नहीं समझा जाता।  पर मैं तो अड़ा था।
                                  दरअसल हुआ ये कि स्कूल में मुझे फिल्मो के डायलाग दोस्तों को सुनाने का बड़ा शौक था, फोटोग्राफी का भी शौक था। तो एक दिन मेरे किसी मित्र ने बोला की मुझे अपना करियर फिल्म लाइन में ही बनाना चाहिए। सभी की तरह मुझे भी शाहरुख़ खान और आमिर खान बोहोत अचे अभिनेता लगते थे। पर इतना मैं समझ गया था कि उनको हीरो उनके डायरेक्टर बनाते हैं। वे  केवल डायरेक्टर के हाथो की कठपुतलियां होते हैं। इसलिए मैंने हीरो न बनकर, डायरेक्टर बनने का फैसला किया। माँ ने पूछा कि डायरेक्टर का काम अच्छी कहानी लिखना भी होता है, तो इस पर मेरा जवाब था की मैं भी अच्छी कहानी लिख सकता हूँ। बस फिर क्या था, मैं सपने देखने लगा एक बड़ा डायरेक्टर बनने के। मुझे मसाला फिल्में ही देखने का शौक था, जो सिनेमा की समझ के साथ साथ जाता रहा। समझ में आया की सिनेमा के और भी रंग हैं और धीरे धीरे समझ में आने लगा की मुझे किस किस्म का सिनेमा देखना अच्छा लगता है, और किस किस्म का सिनेमा बनाना है।
                
                                माँ ने हामी तो भर दी थी, पर ये कह दिया की जो भी करना है ग्रेजुएशन के बाद करना। इसलिए मुझे ३ साल के लिए और इंतज़ार करना था। फिल्म का कीड़ा एक बार काट ले, तो काट ही लेता है।  उसका कोई इलाज नहीं, पढाई में मेरा मन नहीं लगता था और मैंने अपने सपने को जीना शुरू कर दिया ग्रेजुएशन छोड़ कर। हालाँकि बाद में मुझे ग्रेजुएट होने की एहमियत भी अच्छी तरह से समझ आ गयी थी।

                              जब एक छोटे से फिल्म इंस्टिट्यूट से फिल्ममेकिंग का कोर्स किया तो ऐसा लगा की मैं दुनिआ का सबसे महान डायरेक्टर बन जाऊंगा, बस वक़्त आने दो। सपनो की उड़ान और ऊंची हो गयी थी। कोर्स करते ही मुझे एक पंजाबी फिल्म 'एक नूर' में बतौर सहायक निर्देशक काम करने का मौका मिला। सच में उस फिल्म में मैंने फिल्म बनाने के बारे में बहुत कुछ प्रैक्टिकली सीखा। मैं जो कुछ भी बन पाउँगा, उस फिल्म और उस फिल्म से जुड़े सभी लोगो का हमेशा आभारी रहूँगा। फिल्म करने के बाद मुझे ऐसा लगा की मेरे लिए तो हर रास्ता खुला है, लोग मुझे काम देने के लिए इंतज़ार कर रहे है, पर ऐसा कुछ नहीं था, बहुत जल्दी हक़ीक़त मेरे सामने थी। फिल्म करने के बाद मैं घर पे बैठा था, ४-५ महीने तक कुछ काम नहीं था, समझ में आने लगा था की क्यों लोग कहते हैं की फिल्म लाइन में सबको धक्के खाने पड़ते हैं।  तब मैं करीब २३ वर्ष का था, घर पे किसी ने मुझे मुंबई जा के अपनी किस्मत आज़माने का हौसला नहीं दिया, और मुझे भी लगता था की पंजाब में ही फिल्म इंडस्ट्री कड़ी हो जाएगी, मुझे मुंबई जाना ही नहीं पड़ेगा काम के लिए।

                          मेरी कोशिश किसी न किसी डायरेक्टर का सहायक बनने की ही लगी रही। कभी खुद की लघु फिल्म बनाने का प्रयास तक नहीं किया। फिल्म स्कूल में बताया था की अपना जौहर दिखाने के लिए आपको लघु फिल्में बनानी ही पड़ेंगी।  पर मैं कभी लघु फिल्म नहीं बना पाया। फिर मैंने कुछ देर एक चैनल में एडिटर की नौकरी कर ली। उस दौरान मुझे समझ में आया कि जो आज़ादी फिल्म के सेट पर होती है, वह चैनल की नौकरी में नहीं। चैनल छोड़ दिया और फिर से फिल्मों का राह पकड़ लिया। चैनल में मैं हमारे सर राजीव शर्मा जी से मिला जो की एक फिल्म बनाने जा रहे थे। मैंने उनसे अनुरोध किया की वे मुझे अपनी फिल्म में सहायक निर्देशक रख लें, और वे राज़ी हो गए। बस, मैंने चैनल छोड़ दिया और उन्ही के साथ हो लिया।

                         उसके बाद मैंने पिछले ३ सालों में ३ फिल्मे राजीव जी के साथ और ३ फिल्में अन्य फिल्मकारों के साथ की हैं। ३ सालों के हिसाब से ये बहुत कम काम है , पैसा भी ज़्यादा नहीं मिला पर मैं खुश था, क्युकी मैं अब वो कर रहा था जो मुझे करना था। इसी बीच घर पे मां ने ताने देना शुरू कर दिया की तेरे दोस्त जो तेरे साथ पढ़ते थे, सब इंजीनियरिंग करके प्राइवेट आईटी कंपनियों में अच्छी तनख्वाह ले रहे हैं , क्या मिला तुझे ये फिल्म लाइन में जा के? मैं माँ को समझाता की माँ हर किसी को सेट होने में अपना अपना समय लगता है, मैं भी हो जाऊंगा, थोड़ा सब्र रखो. माँ और कर भी क्या सकती थी?

                        खैर, मेरी जंग जारी रही, माँ भी बोलती रही। आज मुझे ७ साल हो गए हैं फिल्म लाइन में। अपनी फिल्म अभी तक नहीं बनी , पर सहायक के तौर पे और एडिटर के तौर पे काम जारी है।  जल्दी ही अपनी भी फिल्म बनाऊंगा। सच में। इस बार इतने साल नहीं लगेंगे। सपने भी देखता रहूँगा, कोशिश भी करूँगा उन्हें पूरा करने की। मैं अभी तक फिल्म नहीं बना पाया उसका सबसे बड़ा कारण मुझे लगता है कि मैं दूसरों पर बहुत ज़्यादा निर्भर हो जाया हूँ। पर अब समझ में आ गया है की ये मेरी ही लड़ाई है, मुझे ही लड़नी होगी। इस लड़ाई में उतरने का फैसला भी मेरा ही तो था !!

1 comment:

  1. आत्म विश्वास, दृढ़ संकल्प , मेहनत - आप निश्चित रूप से अपने लक्ष्य को प्राप्त karenge

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