Tuesday, June 2, 2015

मैं बस एक इन्सां हूँ

न हिन्दू हूँ, न मुसलमां हूँ,
मैं बस एक इन्सां हूँ ,

जब भी खून गिरा है ज़मीं पे,
तब  इंसानियत भी गिरी है
मेरी नज़रों से,

खून भले ही किसी का हो,
रंग तो उसका एक ही है न,
फिर क्यों फर्क करते हो तुम ?

घर चाहे किसी का भी जले,
जलते तो इंसान ही हैं न,
फिर क्यों जलाते हो बस्तियां ?

उनका भगवन ये  कहता है,
उनका अल्लाह वो कहता है,
तुमने ये सब कैसे जाना ?

जब होते हैं दंगे शहर में,
तब कोई हिन्दू, कोई मुसलमां 
नहीं मरता,
मरते हैं इन्सां, दंगों में,

हिन्दू बकरा खाते हैं, मुस्लिम गाय खाते हैं,
अब छोड़ो झगड़ा इस बात पर,
सोचो इंसानियत कौन खाता है ?

बंद करो ये लड़ाई झगड़ा,
ये दिखाना कि कौन है तगड़ा,
तुम दोनों के झगड़े में,
मैं यूँ ही बीच में फंसा हूँ,

मुझे बख्शो इस झगड़े से,
क्योंकि 
मैं बस एक इन्सां हूँ !!














2 comments:

  1. इंसानियत से बड़ा कोई मज़हब नहीं कोई धर्म नहीं...बहुत खूब भाईजान :)

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