आज फिल्म 'बजरंगी भाईजान' देखने का मौका मिला। फिल्म में सलमान खान, नवाज़्ज़ुद्दीन सिद्दीकी, करीना कपूर मुख्य भूमिकाओं में नज़र आते हैं। फिल्म का निर्देशन कबीर खान ने किया है जो इस से पहले काबुल एक्सप्रेस, न्यूयॉर्क, एक था टाइगर जैसी सराहनीय फिल्में बना चुके हैं।
ये फिल्म एक ऐसे आदमी की कहानी है जो गलती से सरहद पार कर चुकी 6 साल की छोटी बच्ची जो की बोल नहीं सकती, को वापिस उसके देश (पाकिस्तान) सही सलामत पहुँचाने का बीड़ा उठाता है।
आम तौर पर सलमान की फिल्मों में सलमान के इलावा और कोई दिखाई नहीं देता। वो हर चीज़ से ऊपर उठ जाते हैं, फिर भले ही वो सह कलाकार हों या फिल्म की कहानी। पर इस फिल्म में सलमान, सलमान नहीं लगते। वो एक किरदार लगते हैं। एक अच्छा निर्देशक ही सलमान से ऐसा करवा सकता है। दरअसल इस फिल्म का सब्जेक्ट ही फिल्म का हीरो है। भारत पाकिस्तान सीमा पर पहले भी कई फिल्में बनी हैं पर राज कपूर साहब की 'हिना' फिल्म के बाद मुझे ऐसी कोई फिल्म याद नहीं, जिसमें दोनों देशों के लोगों को ही ग़लतफहमी का शिकार बताया गया हो। इस फिल्म में दिखाया गया है कि अच्छे और बुरे लोग दोनों तरफ ही होते हैं, और हर बंदा यही चाहता है कि माहौल ठीक रहे। लोग मिल जुल कर प्यार से रहें। कभी भगवान या खुदा भी शायद ये सरहद ख़त्म कर दे।
ये फिल्म को देखने गए दर्शक को ये समझ कर जाना चाहिए कि ये फिल्म दिल से सोचने वाले दर्शक के लिए बनायी गयी है। फिल्म में आपको हर मसाला बराबर मात्रा में मिलता है। फिल्म में सभी ने अच्छी एक्टिंग की है और छोटी कलाकार हर्षाली मल्होत्रा आपका दिल जीत लेगी। वो बच्ची ही इस फिल्म की दूसरी हीरो है, कहानी पहली है, सलमान नहीं।
फिल्म को शूट बहुत अच्छे से किया गया है, एडिटिंग बढ़िया है, आर्ट कमाल है और संगीत भी कानों को अच्छा लगता है। जहाँ 'सेल्फ़ी लेले' पूरा मनोरंजन करता है वहीँ अदनान समी की कव्वाली 'या मोहम्मद' बहुत भावुक कर देने वाली है। कुल मिला कर इस फिल्म को एक बहुत अच्छी फिल्म कहा जा सकता है जो हर भारतीय और पाकिस्तानी को देखनी चाहिए, हो सके तो इकठ्ठे बैठ कर।
इस फिल्म में जो बातें मुझे सबसे अच्छी लगीं वो ये थीं कि इस फिल्म में दिखाया गया है कि मीडिया में कितनी ताकत हो सकती है और मीडिया को करना क्या चाहिए और कर क्या रहा है। दूसरी बात ये कि इस फिल्म में ये मैसेज है कि जब किसी देश के लोग जाग उठते हैं तो उस देश की सरकार या सेना कुछ नहीं कर सकती। आवाम सबसे बड़ी ताक़त बन कर उभरती है। भारत पाकिस्तान के बारे में जब दोनों देशों के लोग अपनी अपनी राष्ट्रीयता लेकर एक दुसरे के सामने खड़े हो जाते हैं तब राष्ट्रीयता से भी पहले ये बात ध्यान में रखनी चाहिए कि वो पहले एक इंसान हैं। हम अच्छे इंसान बन पाएं तो राष्ट्रीयता को न कभी दिखाना पड़ेगा, न जताना। ऐसी फिल्में बनती रहनी चाहियें क्योंकि ये फिल्में हमें एहसास कराती हैं कि अपने देशों को महान बताते बताते बतौर इंसान कितना खोखले हो चुके हैं हम। निर्देशक कबीर खान को ऐसी फिल्म बनाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!
ये फिल्म एक ऐसे आदमी की कहानी है जो गलती से सरहद पार कर चुकी 6 साल की छोटी बच्ची जो की बोल नहीं सकती, को वापिस उसके देश (पाकिस्तान) सही सलामत पहुँचाने का बीड़ा उठाता है।
आम तौर पर सलमान की फिल्मों में सलमान के इलावा और कोई दिखाई नहीं देता। वो हर चीज़ से ऊपर उठ जाते हैं, फिर भले ही वो सह कलाकार हों या फिल्म की कहानी। पर इस फिल्म में सलमान, सलमान नहीं लगते। वो एक किरदार लगते हैं। एक अच्छा निर्देशक ही सलमान से ऐसा करवा सकता है। दरअसल इस फिल्म का सब्जेक्ट ही फिल्म का हीरो है। भारत पाकिस्तान सीमा पर पहले भी कई फिल्में बनी हैं पर राज कपूर साहब की 'हिना' फिल्म के बाद मुझे ऐसी कोई फिल्म याद नहीं, जिसमें दोनों देशों के लोगों को ही ग़लतफहमी का शिकार बताया गया हो। इस फिल्म में दिखाया गया है कि अच्छे और बुरे लोग दोनों तरफ ही होते हैं, और हर बंदा यही चाहता है कि माहौल ठीक रहे। लोग मिल जुल कर प्यार से रहें। कभी भगवान या खुदा भी शायद ये सरहद ख़त्म कर दे।
ये फिल्म को देखने गए दर्शक को ये समझ कर जाना चाहिए कि ये फिल्म दिल से सोचने वाले दर्शक के लिए बनायी गयी है। फिल्म में आपको हर मसाला बराबर मात्रा में मिलता है। फिल्म में सभी ने अच्छी एक्टिंग की है और छोटी कलाकार हर्षाली मल्होत्रा आपका दिल जीत लेगी। वो बच्ची ही इस फिल्म की दूसरी हीरो है, कहानी पहली है, सलमान नहीं।
फिल्म को शूट बहुत अच्छे से किया गया है, एडिटिंग बढ़िया है, आर्ट कमाल है और संगीत भी कानों को अच्छा लगता है। जहाँ 'सेल्फ़ी लेले' पूरा मनोरंजन करता है वहीँ अदनान समी की कव्वाली 'या मोहम्मद' बहुत भावुक कर देने वाली है। कुल मिला कर इस फिल्म को एक बहुत अच्छी फिल्म कहा जा सकता है जो हर भारतीय और पाकिस्तानी को देखनी चाहिए, हो सके तो इकठ्ठे बैठ कर।
इस फिल्म में जो बातें मुझे सबसे अच्छी लगीं वो ये थीं कि इस फिल्म में दिखाया गया है कि मीडिया में कितनी ताकत हो सकती है और मीडिया को करना क्या चाहिए और कर क्या रहा है। दूसरी बात ये कि इस फिल्म में ये मैसेज है कि जब किसी देश के लोग जाग उठते हैं तो उस देश की सरकार या सेना कुछ नहीं कर सकती। आवाम सबसे बड़ी ताक़त बन कर उभरती है। भारत पाकिस्तान के बारे में जब दोनों देशों के लोग अपनी अपनी राष्ट्रीयता लेकर एक दुसरे के सामने खड़े हो जाते हैं तब राष्ट्रीयता से भी पहले ये बात ध्यान में रखनी चाहिए कि वो पहले एक इंसान हैं। हम अच्छे इंसान बन पाएं तो राष्ट्रीयता को न कभी दिखाना पड़ेगा, न जताना। ऐसी फिल्में बनती रहनी चाहियें क्योंकि ये फिल्में हमें एहसास कराती हैं कि अपने देशों को महान बताते बताते बतौर इंसान कितना खोखले हो चुके हैं हम। निर्देशक कबीर खान को ऐसी फिल्म बनाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!